परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर जी के तत्त्व विवेचना पर गृहस्थ जीवन

परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर जी के तत्त्व विवेचना पर
गृहस्थ जीवन
(पुष्पिका-28)
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, शरीर से उठकर देखो भाई ।
नूर-सोल और ज्योति भाव में, देते हैं सब एक दिखलाई ।।
इससे भी ऊपर उठकर देखो, खुदा-गाॅड-परमेश्वर है ।
वही सभी का परमपिता और वही एक भुवनेश्वर है ।।
रूह-नूर और काल-अलम् ही, अहं-सः और परमतत्त्वं है।
सेल्फ-सोल एण्ड सुप्रीम गाॅड ही, सन्त ज्ञानेश्वर का स्पष्ट मत है।
बहनों-बन्धुओं आगे आओ, आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड मिटाओ
धर्म-धर्मात्मा-धरती की रक्षा हेतु, अब सत्य-धर्म ही अपनाओ
विश्व विनाश के मुख में है, धरती वासी सब दुःख में हैं ।
विश्व विनाश से रक्षा हेतु ‘हम’ आप सभी के रुख में हैं ।।
देर करने में पछताना है, अपना अस्तित्त्व गँवाना है ।
जब सारा विश्व रहेगा ही नहीं, तो घर-परिवार क्या सजाना है ?
 अगर अपना अस्तित्त्व बचाना होगा, और घर-परिवार भी सजाना होगा
  तो विश्व विनाश की रक्षा हेतु, अब परम प्रभु के शरण में आना होगा ।।
 सच ‘एक है, ‘एक’ रहेगा, शेष सब बकवास है ।
सच ‘एक’ अवतरित हुआ है, बकवासों का अब नाश है ।
तत्त्ववेत्ता परमपूज्य
सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस