पतन के तरफ ले जाने वाला गृहस्थ जीवन

पतन के तरफ ले जाने वाला
गृहस्थ जीवन
 
प्रेम से बोलिये श्रीसद्गुरुदेव जी महाराज ! 
परमपिता परमेश्वर की जय !! 
आनन्दकन्द लीला धारी प्रभु सदानन्द जी मनमोहन भगवान की जय !! 
          श्रीभगवान् के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए प्रार्थना है कि ! हे ज्ञानदाता-मुक्ति-अमरता के दाता, दयासागर भक्त वत्सल प्रभु पतन-विनाश के तरफ ले जाने वाला ये साँसारिकता-पारिवारिकता, माया मोहासक्त गृहस्थ जीवन से सदा अपने त्यागी-वैरागी भक्त-सेवक को बचा के रखना और अपने श्रीचरणों का अनन्य भक्ति-सेवा-प्रेम से युक्त वैराग्यवान बनाये रखें आपसे कोटिशः प्रार्थना है।
           परमेश्वर द्वारा नियत दो क्षेत्र है एक लौकिक जिसमें शरीर-परिवार- संसार है जिसको गृहस्थ जीवन भी कहते हैं । इस क्षेत्र का मालिकाना माया के हाथ में होता है माया जीव को मोक्ष पर्यन्त तड़पाती रहती है । परमात्मा या परमब्रह्म के नित्य सम्पर्क सेवा में रहने वाले आत्मा या ब्रह्म से बिछुडा. (सम्बन्ध काट) कर विनाशी अधः पतित रूप घोर घृणित माया-मोहासक्त बनाने वाला गृहस्थ जीवन में कामना ही कामना है, जिसकी पूर्ति के लिए हर तरह का पाप-कुकर्म, सभी अपराध को करना पड़ता है । जिसका फल पतन और विनाश है । यही गति गृहस्थ जीवन की है ।
          परमेश्वर द्वारा नियत दूसरा क्षेत्र है पारलौकिक जिसको धर्म और मोक्ष भी कहते हैं जहाँ जीव-आत्मा-परमात्मा तीनों का स्पष्ट अलग-अलग जानकारी दर्शन उपलब्धि है जिस क्षेत्र का मालिकान पूर्णतया परमेश्वर के हाथ में होता है । धर्म और मोक्ष के क्षेत्र में कोई कामना नहीं होता यदि कदाचित कामना आ ही गई तो परमेश्वर के कृपा से कामना की पूर्ति हेतु अर्थ पहले से ही रहता है । इस क्षेत्र में रहने वाले महापुरुष-सत्पुरुषों की पूर्णतया लोक-परलोक दोनों की जिम्मेदारी भगवान् के हाथ में होता है । सम्पूर्ण कर्म बन्धनों से मुक्ति, भव के बन्धनों से मुक्ति-अमरता यश-कीर्ति इस क्षेत्र की उपलब्धि होती है ।
           आप बन्धुओं को यह निर्णय लेना है कि आप को माया-मोहासक्त विनाशशील लौकिक साँसारिक गृहस्थ बनना है या इनसे परे माया-मोह रहित ‘शान्ति और आनन्द की अनुभूति एवं परमशान्ति एवं परमानन्द तथा ‘‘मुक्ति और अमरता से युक्त’’ अविनाशी एवं अमरता के बोध रूप ब्रह्ममय आध्यात्मिक-महापुरुष एवं तात्त्विक परमपुरुष रूप भगवदवतार के पार्षद रूप सत्पुरुष बनाने वाला धर्म और मोक्ष वाला मार्ग यह दोनों मार्ग अपने-अपने गुण-दोषों के साथ आपके समक्ष है । आप जिस जीवन में अपने को रखेगें उस क्षेत्र की लाभ-उपलब्धि आप को मिलेगा ।
          मेरे सद्गुरु के अनुसार ‘‘परिवार बसाकर कोई गृहस्थ आदमी शान्त नहीं रह सकता है, स्थिर नहीं रह सकता है, सुख से नहीं रह सकता है, स्वतन्त्रता एवं स्वछन्दता समाप्त हो जाती है, पराधीनता एवं पैरों में मोह डण्डा-बेड़ी तथा हाथका में ममता -आसक्ति रूपी हथकड़ी लग जाती है, जिससे छूटना जन्म-जन्मान्तर तक के लिए भी कठिन है, लोहे की हथकड़ी तो खुल जाती है परन्तु मोह-ममता वाली करोड़ों जन्मों तक खुलनी आसान नहीं है । परिवार से सुख-चैन छिन जाता है, नाना प्रकार की चिन्ताएँ रात-दिन जलाने लगती हैं, समस्याएँ एक न एक सिर पर चढ़ी ही रहती हैं, अथक परिश्रम करके लाइये, तब भी ठीक से भरण-पोषण मुश्किल हो जाता है, चोरी, लूट, जोर-जुल्म, अत्याचार तथा सभी भ्रष्टाचारों का मूलरूप घूसखोरी आदि सब कुकर्म-पाप राशि बटोर-बटोर कर तो किसी तरह पारिवारिक भरण-पोषण हो पाता है अर्थात् गृहस्थ जीवन सभी कुकर्मों सभी आपत्तियों-विपत्तियों तथा पाप राशि बटोरने वाली महान् विपत्ति ही है ।  जिसकी आध्यात्मिक महापुरुष तो घोर घृणा के रूप में निन्दा करते ही रहे हैं, तात्त्विक सत्पुरुष रूप भगवदवतार भी खुले दिल से घोर घृणित भाव में निन्दा किए वगैर नहीं रह सके ।’’
       भगवान् श्रीविष्णु जी के अनुसार--‘‘केवल अधर्म से कुटुम्ब के भरण-पोषण के लिये प्रयत्नशील व्यक्ति अंधकार की पराकाष्ठा अन्धतामिस्र नामक नरक में जाता  है ।’’  गरुड़ पु03/70
          ‘‘लौह एवं लकड़ी से बने हुए पाशोंसे बँधा हुआ मनुष्य मुक्त हो सकता है, किन्तु पुत्र और पत्नी रूपी पाशों से बँधा मनुष्य कभी भी मुक्त नहीं हो सकता ।’’  गरुड़ पु016/47
           भगवान् श्री राम जी के अनुसार --
           काम क्रोध लोभादि मद् प्रबल मोह के धारी ।
           तिन्ह महँ अति दारून दुःखद माया रूपी नारी । 43/अ/का/
           अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुःख खानि ।
           ताते कीन्ह निवारण मुनि मैं यह जींय जानी । 44
         काम, क्रोध,लोभ, मद आदि मोह के शक्तिशाली (हथियार) के धार के रूप में है । इन सभी के बीच जो सबसे अधिक कष्ट देने वाला दुःख माया रूपी स्त्री होती है ।
          इससे नारी सभी अवगुणों की खान तथा सूल आदि समस्त कष्टों को भी देने वाली है । इतना ही नहीं ये स्त्रियाँ सभी दुःखों की खान ही होती है । इनके सम्पर्क वाला व्यक्ति सुख चाहे तो यह बिल्कुल ही असम्भव बात है । इनसे सम्पर्क रखने वाले को हमेशा कष्ट एवं दुःख झेलते रहना पड़ता है । हे मुनि ! यही सब मैं अपने अन्दर में जान समझ करके ही आप को विवाह करने नहीं दिया । इस विवाह रूप माया-मोह-ममता-वासना आदि वाली स्त्री से आप को बचाया है ।
             भगवान् श्री कृष्ण जी के अनुसार --
        ‘‘जितने भी सकाम और बहिर्मुख करने वाले कर्म है, उनका फल दुःख ही   है । जो भी जीव शरीर में अहंता-ममता करके उन्हीं में लग जाता है, उसे बार-बार जन्म और मृत्यु पर मृत्यु प्राप्त होती है । ऐसी परिस्थिति में मृत्युधर्मा जीव को क्या सुख हो सकता है ?’’
      अर्थात् गृहस्थ जीवन में रहकर इस मानव जीवन की मंजिल मोक्ष की प्राप्ति कदापि सम्भव ही नहीं है बल्कि घनघोर नारकीय यातनायें दिलाने वाला यह गृहस्थ जीवन होता हैं । यदि आप महापुरुषत्त्व-सत्पुरुषत्त्व की प्राप्ति करना चाहते हो मुक्ति-अमरता से युक्त होना चाहते हों तो पतित गृहस्थ जीवन छोड़कर अपने जीवन को भगवान् का निज क्षेत्र धर्म और मोक्ष के मार्ग में अपने जीवन को करना ही होगा ।
          बन्धुजन यह सद्ग्रन्थ आपको हस्तगत है कृपया इसको पढ़कर अपने जीवन को पतन-विनाश के तरफ जाने से रोकें और धर्म-मोक्ष में स्थित करके देव दुलर्भ जीवन को सार्थक-सफल बनावें । शेष सब भगवत् कृपा ।